अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी को बीते छह महीने, आखिर अभी तक किसी मुल्क ने क्यों नहीं दी सरकार को मान्यता? जानें क्या है वजह

अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) ने अगस्त में काबुल (Kabul) पर कब्जा करने के साथ ही पूरे देश पर नियंत्रण कर लिया. इस घटनाक्रम को पूरा हुए लगभग छह महीने पूरा हो चुका हैं. लेकिन अभी तक किसी भी मुल्क ने तालिबान सरकार (Taliban Government) को मान्यता नहीं दी है. हालांकि, पाकिस्तान (Pakistan), कतर (Qatar) और चीन (China) जैसे कुछ मुल्क ऐसे हैं, जिन्होंने अनौपचारिक तौर पर तालिबान सरकार संग संबंध बनाए हुए हैं. इन मुल्कों के साथ तालिबान के रिश्ते बेहतर से नजर आ रहे हैं. लेकिन इनमें से भी किसी मुल्क ने तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है.

यहां गौर करने वाली बात ये है कि पाकिस्तान का तालिबान के साथ बेहतर संबंध होना लाजिमी नजर आता है. दरअसल, इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि तालिबान की दोबारा अफगानिस्तान में वापसी के पीछे इस्लामाबाद का हाथ रहा है. वहीं, तालिबानी अधिकारियों ने चीन का दौरा भी किया है, जो दिखाता है कि चीन तालिबान संग रिश्ता बनाना चाहता है. चीन की नजर अफगानिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों पर है. यही वजह है कि वो अफगानिस्तान में दिलचस्पी ले रहा है. दूसरी ओर, कतर के साथ तालिबान के रिश्ते लंबे वक्त से बेहतर रहे हैं, क्योंकि राजधानी दोहा में तालिबान का कार्यालय है, जहां से अमेरिका और पश्चिमी मुल्कों से डील होती थी.

तालिबान ने मुस्लिम देशों से मान्यता देने को कहा

इन बातों से एक बात को स्पष्ट हो जाती है कि तालिबान के साथ ये मुल्क रिश्ता बनाने चाहते हैं, लेकिन इनके पीछे किसी की आर्थिक वजह शामिल है तो किसी का राजनैतिक फायदा. हालांकि, इन सबके बाद भी कोई भी मुल्क तालिबान सरकार को मान्यता नहीं देना चाहता है. तालिबान भी अपनी सरकार को मान्यता दिलवान के लिए एडी चोटी का जोर लगा रहा है. तालिबान के प्रधानमंत्री ने हाल ही में कहा था कि मुस्लिम देशों को उनकी सरकार को मान्यता देनी चाहिए. चीन से भी इस बाबत मदद मांगी गई है. इससे एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि सभी मुल्क अभी वक्त ले रहे हैं. लेकिन ऐसा क्या है, जिसकी वजह से अभी तक कोई भी पहला कदम नहीं उठा रहा है.

आखिर कोई क्यों नहीं दे रहा सरकार को मान्यता?

दरअसल, तालिबान सरकार को मान्यता नहीं देने के पीछे की सबसे बड़ी वजह से मानवाधिकार को लेकर उसका ट्रैक रिकॉर्ड. तालिबान की वपासी के बाद से ही महिलाओं के अधिकारों को कुचला जा रहा है. महिलाओं को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है. वे अब अकेले लंबी दूरी की यात्राएं नहीं कर सकती हैं. लड़कियां स्कूल नहीं जा पा रही हैं. वहीं, अल्पसंख्यकों के साथ ज्यादती की रिपोर्ट्स भी सामने आई हैं. मीडिया कर्मचारियों के साथ हिंसा की गई. हाल ही में तालिबान अधिकारियों ने कहा कि बिना इजाजत सरकार के खिलाफ कुछ भी प्रकाशित नहीं किया जा सकेगा. इसके अलावा, पिछली सरकार में काम करने वाले कर्मचारियों और सैनिकों के साथ मारपीट की गई है.

वहीं, सरकार में सभी समूहों का प्रतिनिधित्व का अभाव भी देखने को मिला है. अंतरराष्ट्रीय बिरादरी ने स्पष्ट कर दिया है कि जब तक तालिबान एक समावेशी सरकार का गठन नहीं करेगा, तब तक उसे मान्यता नहीं मिलने वाली है. तालिबान सरकार में महिलाओं और अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व नहीं है. इसके अलावा, तालिबान को अभी भी कई मुल्क एक आतंकी संगठन के तौर पर देखते हैं. इस वजह से ये मुल्क इसे मान्यता नहीं देना चाहते हैं. इन सब बातों के इतर भी एक वजह ये है कि अगर किसी मुल्क ने तालिबान को मान्यता दी और फिर ये संगठन अपने पुरानी हरकते दोहराने लगा, जैसा 90 के दशक में देखने को मिला था, तो उस देश की दुनियाभर में आलोचना होगी.

[metaslider id="122584"]
[metaslider id="347522"]