चौधरी मित्रसेन आर्य की स्मृति में पर इंडस पब्लिक स्कूल-दीपका में हुआ हवन-पूजन

⭕ दुनिया में कुछ विरले लोग होते हैं जो अपने सत्कर्म के पदचिन्ह छोड़ जाते हैं-डॉ. संजय गुप्ता।

⭕ सत्य, संयम और सेवा के सम्मिश्रण चौधरी मित्रसेन के लिए मानव हित सदैव सर्वोपरी रहा-श्री सब्यसाची सरकार

कोरबा, 27 जनवरी (वेदांत समाचार)। हरियाणा के पुण्यभूमि में हिसार जिले के खांडाखेड़ी गाँव में प्रतिष्ठित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और आर्यसमाजी धर्मनिष्ठ परिवार में 15 दिसम्बर 1931 को चौधरी शीशराम आर्य के गृह में माता श्रीमती जीवनी देवी की कोख से श्री मित्रसेन आर्य जी का जन्म हुआ । महज 9 वर्ष की उम्र में ही उनके कंधों पर घर की सारी जिम्मेदारी आ गई और पढ़ाई छोड़ घर में कृषि और पशुपालन करने लगे । पिता चौधरी शीशराम आर्य की शिक्षाओं तथा आर्यग्रंथों के स्वध्याय से बचपन से ही ईश्वर पर दृढ़ विश्वास, शुभ संकल्प और पुरूषार्थ मित्रसेन जी के जीवन के अनिवार्य अंग बन गए । आपके पूज्य पिता स्वयं एक निर्लोभ भजनोपदेशक थे, इसलिए आप भजन साहित्य के महत्व को समझते थे । सत्यार्थ प्रकाश आपके जीवन की सभी परिस्थितियों में आपके प्रेरक और मार्गदर्शक रहा। इसी कारण आप स्वयं के खर्च से सत्यार्थ प्रकाश प्रकाशित कर अपने मित्रों, कृपा पात्रों मिलने वालों को हजारों की संख्या में वितरित करते रहे । आप स्वामी धर्मानंद जी के कुशल मार्गदर्शन में उड़ीसा के वनवासी क्षेत्र में संचालित संस्थाएँ, धर्मरक्षा और वेदप्रचार के क्षेत्र में अतुलनीय कार्य करते रहे साथ ही छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, दिल्ली और हरियाणा में अनेक सामाजिक और शिक्षण संस्थाओं में चौधरी मित्रसेन का सहयोग अहम रहा । आपका जीवन सादा और उच्च विचारों से परिपूर्ण था । आप भारत सरकार द्वारा 2002 में कृषि विषारद की उपाधि से भी अलंकृत हुए ।

इस परिवर्तनशील संसार में जिसने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु निश्चित है। लेकिन जन्म लेना उसी का सार्थक है,जो अपने कार्यों से कुल, समाज और राष्ट्र को प्रगति के मार्ग पर अग्रसर करता है। महाराजा भतृहरि के इन महावाक्यों को चरितार्थ करता चौधरी मित्रसेन आर्य का जीवन सत्य,संयम और सेवा का अद्भुत मिश्रण रहा।इनके लिए स्वहित को छोड़ मानव हित ही सर्वोपरि रहा। 15 दिसंबर 1931 को हरियाणा के हिसार जिले के खांडा खेड़ी गाँव में चौधरी श्रीराम आर्य के घर में माता जीवो देवी की कोख से चौधरी मित्रसेन आर्य का जन्म हुआ। अपने पूर्वजों से मिले संस्कार व अपनी पत्नि के साथ चौधरी मित्रसेन जी सन् 1957 में रोहतक में एक लेथ मशीन के साथ अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया।
एक गृहस्थ व व्यवसायी होते हुए भी उन्होंने अपने जीवन में ऐसे आदर्श स्थापित किए जिन्हें यदि हम अपना लें तो रामराज्य की कल्पना साकार की जा सकती है। चौधरी जी के विचार थे हमें हर कार्य को करने पहले यह सोच लेना चाहिए कि इसके करने से सबका हित होगा या नहीं ।यदि व्यक्तिगत रुप से लाभ लेने वाला कोई कार्य समाज के लिए अहितकर है तो उस कार्य को कदापि नहीं करना चाहिए।

डॉ. संजय गुप्ता एवं श्री सब्यसाची सरकार एवं श्रीमती सोमा सरकार ने चौधरी मित्रसेन आर्य के तैल्यचित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया । ऐसे महान विभूति के निर्वाण दिवस के पावन अवसर पर दीपका स्थित इंडस पब्लिक स्कूल में हवन-पूजन का आयोजन किया गया। प्रातः विद्यालय परिसर में वेदमंत्रों के उच्चारण के साथ यज्ञ में आहुतियाँ डाली गई विद्यालय के संगीत शिक्षक श्री राजू कौशिक के द्वारा कर्णप्रिय प्रातःकालीन भजन की सुमधूर स्वरों के मध्य आचार्य हेमलाल शास्त्री जी गरूण नगर के द्वारा सतत रूप से मंत्रोच्चारण कर विद्यालय में कार्यरत शिक्षक-शिक्षिकाओं ने सप्राचार्य यज्ञ में आहुतियाँ दी गई तत्पश्चात प्रसाद वितरण किया गया ।

प्रातः प्रार्थना स्तुति के पश्चात इंडस पब्लिक स्कूल दीपका विद्यालय में सतत रूप से साफ-सफाई सहित अन्य कार्यो में सहयोग देने वाले चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को प्राचार्य डॉ. संजय गुप्ता एवं श्री सब्यसाची एवं श्रीमती सोमा सरकार के द्वारा चौधरी मित्रसेन आर्य के निर्वाण दिवस के सम्मान में विभिन्न उपहारों से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए विद्यालय की वरिष्ठ शिक्षिका श्रीमती सोमा सरकार ने कहा कि जीवन पर्यन्त परोपकार एवं परहित के आदर्श पर चलने वाले और समाज को एक दिशा और दृष्टि देने वाले चौधरी मित्रसेन जी भौतिक रुप से आज हमारे बीच नहीं हैं,लेकिन उनके विचार कार्य और उनकी दृष्टि युगों-युगों तक भावी पीढ़ी हेतु एक प्रेरणास्रोत रहेगी।

इस पावन अवसर पर विद्यालय प्राचार्य डॉ. संजय गुप्ता ने अपने प्रेरक उद्बोधन में कहा कि दुनिया में कुछ ही विरले लोग ऐसे होते हैं जो अपने सतकर्मों के पदचिन्ह छोड़ जाते हैं। जो दूसरों के लिए हमेशा अनुकरणीय होते हैं। चौधरी मित्र सेन ऐसे व्यक्तित्व के धनी थे। वे जीवनभर हमारे लिए मिसाल एवं प्रेरणास्रोत बने रहेंगे। ऐसे व्यक्तित्व की कमी समाज में हमेशा बनी रहती है। हमें ऐसे व्यक्तित्व से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ना चाहिए । हमें हर कार्य को करने से पहले यह जाँच लेनी चाहिए कि इसके करने से सबका हित होगा क्यांकि हमारा कोई भी कार्य स्वार्थ के लिए नहीं परमार्थ के लिए होना चाहिए । आज चौधरी श्री मित्रसेन जी हमारे मध्य नहीं है लेकिन उनके आदर्श जिंदा रहेंगें ।

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