भोपाल 20 जनवरी (वेदांत समाचार)। कड़ाके की ठंड में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दौरा कर अधिकारियों को निर्देश दिए कि कोई भी व्यक्ति फुटपाथ पर सोता न मिले। इस आदेश के बाद कई लोगों को इस ठंड में रात गुजारने के लिए सुरक्षित जगह मिल गई। रैन बसेरों में पहुंचकर लोग सुकून से सो पा रहे हैं। हालांकि, रैन बसेरा पहले से ही कई बेसहारा लोगों को अपना चुका है। वे दिन में कोई भी काम करते हो, कहीं भी घूमते हो, लेकिन रात गुजारने रैन बसेरा में ही आते हैं। यहां कुछ अपने परिवार से परेशान होकर आए हैं, तो कुछ धोखा खाकर एक गुमनाम जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं। ऐसे लोगों के लिए रैन बसेरा ही एक मात्र रात बिताने का ठिकाना बना हुआ है।
दरअसल, राजधानी में कुल 16 रैन बसेरे बनाए गए हैं। इनमें वर्तमान में करीब 1000 से अधिक लोग रात गुजारते हैं। इन्हें यहां चादर, कंबल और बिस्तर तो मिल जाता है, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनके पास स्थाई रूप से रहने की व्यवस्था न होने के कारण हर दिन पांच से 10 रुपये की पर्ची कटवाकर जीवन-यापन करना पड़ता है। ऐसे ही गुमनाम लोगों से जब नवदुनिया ने बातचीत की तो कई चौंकाने वाली मार्मिक कहानियां सामने आईं।
केस-1 : भाई ने घर से निकाल दिया, अब रैन बसेरा ही सहाराइंदौर के नरेला गांव में रहने वाले मोहन सिंह विश्वकर्मा ने बताया कि वह इन दिनों मुफलिसी की जिंदगी व्यतीत कर रहा है। उसे रैन बसेरे में रहकर रात गुजारना पड़ती है। उसके अपनों ने ही उसे बेदखल कर दिया है। अब वह कबाड़ बेचकर अपना गुजारा करता है। मोहन ने बताया कि वे दो भाई हैं। दोनों ने मिलकर 2020 में दुकान खोली थी। इस बीच उसका एक्सीडेंट हो गया और इस हादसे में वह विकलांग हो गया। उसने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत डेढ़ लाख रुपये देकर मकान भी खरीदा था, लेकिन उसके भाई ने उस पर लाखों का कर्जा होने की बात कहकर मकान भी ले लिया। साथ ही घर से निकल जाने के लिए भी कह दिया। मोहन वहां से भोपाल आ गया और कोरोना संक्रमण के समय से रात को रैन बसेरे में रहता है। सुबह कबाड़ बेचता है और दीनदयाल रसोई में 10 रुपये देकर खाना खाकर पिछले दो साल से गुजर बसर कर रहा है।
केस-2 : 2010 में दुर्घटना में पैर खोया, तब से रैन बसेरा में ही आसरा
झांसी का रहने वाला माया शिव इन दिनों सुल्तानिया के रैन बसेरे में रहता है। उसने बताया कि बचपन से ही उसके भाई के साथ उसकी नहीं बनती थी। इसके कारण उसने अपना घर छोड़ दिया। दस साल से वह रैन बसेरे में रहकर अपना जीवन व्यतीत कर रहा है। 2010 में एक्सीडेंट होने के बाद एक पैर पूरी तरह से खराब हो गया। हमीदिया अस्पताल में लंबा इलाज चला, लेकिन पैर नहीं बचा। इसके बाद कोई परिवार न होने के कारण रैन बसेरे में रहकर ही अपना गुजर बसर कर रहा है।
राजधानी में 16 रैन बसेरे हैं, जिनमें अभी ठंड के समय एक हजार से अधिक लोग रात को रहते हैं। इन्हें सभी सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं। हाल ही में रेलवे स्टेशन के पास एक अस्थाई रैन बसेरा बनाया गया है, जहां राहगीरों को रुकवाया जा रहा है।
[metaslider id="347522"]