सीएम के ड्रिम प्रोजेक्ट नरवा विकास योजना में अफसर कर रहे फर्जीवाड़ा, मजदूर के बजाय मशीन से करवा रहे काम

0 वन परिक्षेत्र पश्चिम परलकोट के मजदूर रोजगार कि तालाश में हो रहे पलायन ।

पखांजुर 11 जनवरी (वेदांत समाचार)। नरवा विकास योजना छत्तीसगढ़ शासन की एक महत्वाकांक्षी योजना है।जिसका मूल उद्देश्य नदी-नालों एवं जल स्त्रोतो को पुर्नजीवन प्रदान करना और किसानो को आत्मनिर्भर व सशक्त बनाना है।बताना लाजमी होगा कि कोरोना महामारी के दौर में एक ओर जहां स्थानीय मजदूरों व प्रवासी मजदूरों के हितों को ध्यान में रखकर सरकार द्वारा नरवा विकास योजना जैसे अन्य योजनाएं चलाई जा रही है।ताकि यहां के मजदूरों को स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध हो सके और उन्हें आर्थिक संकट से उबारा जा सके।लेकिन इसके उलट वन विभाग के अफसरो व्दारा राजनीतिक रसूखदारों एवं विभाग के उपरी अधिकारीयो से मजबूत पैठ कि बदौलत।बड़े पैमाने पर सरकार व्दारा तहत संचालित हो रही योजनाओं में खुलेआम जेसीबी मशीन से कार्य कराकर सरकारी खजाने की बंदरबांट कर रहे है।और मजदुरो के हक में डाका डाला जा रहा है।


वन परिक्षेत्र पश्चिम परलकोट अन्तर्गत नरवा विकास योजना के तहत कराए जाने वाले विकास कार्यों को मजदूरों से नहीं कराकर मशीनों से कराया जा रहा है।इससे गांव में रहने वाले गरीब मजदूर काफी परेशान है।मजदूरी नहीं मिलने से ग्रामीण अपने परिवार का भरण-पोषण तक ठीक ढंग से नहीं करा पा रहे है।सबसे ज्यादा परेशानी उन मजदूरों की हो रही है,जिनके पास खेती करने के लिए एक इंच भी जमीन नहीं है।यह लोग केवल मजदूरी के भरोसे ही रहते है।


पश्चिम वनमंण्डल के पश्चिम परलकोट वनपरिक्षेत्र अन्तर्गत सारे नियम कानून को ताक में रखकर अतिरिक्त पैसा कमाने के फिराक में वन कर्मचारियों एवं अधिकारियों द्वारा क्षेत्र के आदिवासी समुदाय के गरीब मजदूरों को रोजगार देने के बजाये,मिट्टी कार्य मशीन के द्वारा कराया जा रहा है।ताकि समय से पहले निर्माण कार्य करा कर फर्जी मजदूरों का देयक भुगतान बनाकर भ्रष्टाचार को अंजाम देकर करोड़ो रुपयों का बंदरबांट किया जा सके।कार्य स्थल पर निर्माण कार्य से संबधित सूचना बोर्ड तक नहीं लगाया गया है।


कार्य को पुरा कराने कि इतनी हड़बड़ी है कि वनो कि रक्षा करने वाले वन विभाग के अफसर सैकड़ो हरे पेडों की कटाई भी करवा दे रहे है।जिसको आनन फानन में सफाई किया गया है ।पेंडो की अवैध कटाई भी वन कर्मचारी के निर्देशन मे हुआ है।ऐसा प्रतितत हो रहा मानो पश्चिम परलकोट वनपरिक्षेत्र वनो एंव वन्यजीवों के बचाव के लिए नहीं बल्कि वन अफसरों के एशोआराम के लिए है।इस वन परिक्षेत्र के बजट से अफसरों की जेब गर्म होती है।यहाँ भ्रष्टाचार चरमसीमा पर है।यहाँ के बजट का आधा हिस्सा राजधानी के अफसरों व नेताओं तक पहुंचने की चर्चा वन विभाग के कूछ अधिकारी कर्मचारी स्वयं करते है।हकीकत आखिर क्या है यह तो वन विभाग के अधिकारी कर्मचारी ही जाने।लेकिन इस तरह मजदूरो के बजाय खुलेआम मशीन से काम करावाना कई सवालो को जन्म देता है।


गौरतलब है कि भू-जल संवर्धन संरचनाओं का निर्माण करनेे।और करोड़ो कि राशि से बनने वाली इन जल संग्रहण संरचनाओं से वनांचल में रहने वाले लोगों और वन्य प्राणियों के लिए पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के साथ।नाले में पानी का भराव रहने से आसपास की भूमि में नमी बनी रहने के अलावा खेती-किसानी और आय के स्रोत में वृद्धि कराने के साथ स्थनीय ग्रामीणो को रोजगार उपलब्ध कराने के उद्येश्य से सरकार ने वर्ष 2020-21 में नरवा विकास योजना के तहत पश्चिम भानुप्रतापपुर वन मण्डल के 28 नालों को 5 करोड़ 49 लाख रुपये कि राशि उपचारित किया गया।परन्तू उक्त करोड़ो कि राशि को खपत करने के उद्येश्य से वन विभाग के अफसर मशीन से काम करा रहे है।स्थानीय ग्रामीणो ने इसकी जांच करने कि मांग कि है।

व्ही श्रीनिवास राव,मुख्यकार्यपालन अधिकारी कैम्पा मद– नरवा विकास योजना,छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वाकांक्षी सुराजी गांव योजना के नरवा,गुरवा,घुरवा,बाड़ी का ही एक घटक है।इस योजना को आरंभ करने का मुख्य लक्ष्य है कि नदी-नालों एवं जल स्त्रोतो को पुर्नजीवन करना।जिससे सालों भर जल की उपलब्धता बनी रहे और किसान आत्मनिर्भर व सशक्त रहे।इस कार्य के लिये टेंडर किया जाता है।अब देखना होगा कि टेंडर में क्या है ? गलत पाये जाने पर निश्चित तौर पर कार्रवाही होगी।