कठुआ बलात्कार मामले में सबूत नष्ट करने के दोषी पुलिसकर्मी को जमानत मिलने पर पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती ने दुख जताया है. महबूबा ने शनिवार को ट्वीट कर कहा कि ‘न्याय का पहिया पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है’. महबूबा ने टवीट करते हुए कहा कि ‘वह कठुआ बलात्कार मामले में सबूत नष्ट करने के दोषी पुलिसकर्मी को जमानत मिलने और उसकी जेल की अवधि सस्पेंड किए जाने से क्षुब्ध हैं.’ उन्होंने अपने ट्वीट में आगे कहा, ‘जब एक बच्ची के साथ बलात्कार और उसे पीट-पीटकर मार डाला जातो हो और वह वह न्याय से वंचित रहे , इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि न्याय का पहिया पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है.’
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने दोषी पुलिस कर्मी को सजा को किया था निलंबित
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने बीते दिनों दोषी पुलिस कर्मी को राहत देते हुए उसकी सजा को निलंबित करने की अर्जी मंजूर कर ली थी. साथ ही हाईकोर्ट ने अपील लंबित रहते उसे रिहा करने का आदेश जारी किया था. इससे पूर्व में अदालत ने इस मामले के मुख्य साजिशकर्ता सांजी राम, परवेश कुमार और पुलिस अधिकारी दीपक खजुरिया को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. तो वहीं पुलिस अफसर सुरेंद्र शर्मा, हेड कांस्टेबल तिलक राज और एसआई आनंद दत्ता को पांच-पांच साल कैद की सजा सुनाई थी. जिसके बाद इस सजा के खिलाफ कांस्टेबल तिलक राज ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी. जिसमें तिलक राज ने अपील लंबित रहते सजा निलंबित करने की मांग की थी. याचिका में तिलकराज ने कहा कि वह 2 वर्ष 9 माह की सजा पहले ही काट चुका है और ऐसे में अब उसकी सजा निलंबित करने का आदेश जारी किया जाए. हालांकि जम्मू और कश्मीर सरकार ने इस मांग का विरोध करते हुए कहा था कि अगर उसे रिहा किया गया तो कानून व्यवस्था का संकट पैदा हो जाएगा. इस पर हाईकोर्ट ने सरकार की दलील खारिज करते हुए कहा था कि दोषी पुलिस कर्मी 9 माह पैरोल पर रह चुका है, तब समस्या नहीं आई थी और केवल शांतिभंग की आशंका के कारण उसको राहत देने से इनकार नहीं किया जा सकता है.
यह था मामला
जम्मू के कठुआ में 10 जनवरी 2018 को आठ साल की बच्ची के अपहरण का मामला सामने आया था. जिसके बाद 17 जनवरी को उस बच्ची की लाश मिली थी. जो क्षत-विक्षत स्थिति में पाई गई थी. बच्ची की लाश मिलने के बाद इसके विरोध में देशभर में धरने प्रदर्शन भी हुए थे. वहीं पुलिस ने बाद में मामले में 15 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की थी. जिसमें पुलिस ने बड़े खुलासे किए थे. जिसके बाद मामले को लेकर विवाद गहरा गया था. ऐसे में इस केस को जम्मू-कश्मीर के बाहर पंजाब के पठानकोट में सुनवाई के लिए भेज दिया गया था. जहां पठानकोट जिला अदालत ने सुनवाई में आठ में से सात आरोपियों को दोषी मानते हुए सजा सुनाई थी.
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